भीड़ भरती थी भारी, कभी शाम को तो कभी भरी दुपहरिया में, कुछ चेहरे अनुभावों वाले चांदनी भीड़ भरती थी भारी, कभी शाम को तो कभी भरी दुपहरिया में, कुछ चेहरे अनुभावों ...
उठती हूं जब भी पड़े होते घर के काम, मुझे पुकारने लगते घर में दिन भर के काम, उठती हूं जब भी पड़े होते घर के काम, मुझे पुकारने लगते घर में दिन भर के ...
याद आ गया फिर मुझे वो गांव अपना, कच्ची मिट्टी के वो घर जिन पर लगी फूस खपरैल की छत याद आ गया फिर मुझे वो गांव अपना, कच्ची मिट्टी के वो घर जिन पर लगी फूस ख...
पिता अमूल्य हैं। पिता अमूल्य हैं।
लॉक डाउन का अपना तराना अच्छा लगता है। लॉक डाउन का अपना तराना अच्छा लगता है।
जहाँ मैं बड़ी हुई, जिस अंगना में खेली हूँ उसको छोड़कर पति के घर बिन सोचे आ जाती हूँ खूब करती सेवा,पत... जहाँ मैं बड़ी हुई, जिस अंगना में खेली हूँ उसको छोड़कर पति के घर बिन सोचे आ जाती ह...